Tuesday 10 May 2016


समलैंगिकता : संस्कृति ,परिवार और कानून का बिखंडन
. . सामाजिक मर्यादाओ के साथ परवर्तित होने वाले कानून के स्वरूप से उठेंगे कई बवंडर .......

...... हम सबने सुना की मुजफ्फरनगर के शामली में दो लड़कियों ने सामाजिक लोकलाज को दरकिनार कर एक- दुसरे से मंदिर में शादी रचा ली .दुर्भाग्य से इसमें से एक लड़की पहले से शादीशुदा थी . उन्होंने कोर्ट से इस शादी को बैधानिक मान्यता देने की अपील की . भले ही पश्चिमी देशो के लिए यह सामान्य सी बात हो लेकिन भारत के उत्तरप्रदेश समेत अधिकांश प्रदेशो के लिए झंकृत करने वाली खबर है .मैं यह नहीं कहता की इससे पहले इस तरह की घटनाए हुई ही नहीं लेकिन सामाजिक वर्जनाओ के चलते इनकी संख्या उंगुलियों में ही है .यंहा सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर लोगो को भी यह समझने की जरूरत है की समय के साथ समाज में परिवर्तन तो आता है लेकिन इस परिवर्तन की दिशा और दशा पर नियंत्रण गडबडाया तो पूरा सामाजिक ढांचा ही छिन्न-भिन्न हो जाएगा क्योकि कानून के साथ -साथ सामाजिक ढांचा भी लोगो को बुराइयों और कई जघन्न अपराधो से दूर रखता है .युद्ध नीति के लिहाज से कहे तो किसी देश को पूरी तरह परास्त करने के लिए उस देश की संस्कृति , सभ्यता और सामाजिक ताने -बाने को भी तोड़ना होगा तभी उन पर पूरी तरह नियंत्रण संभव हो सकता है ......
समलैंगिकता को मानवाधिकार से जोड़ने वाले लोग अगर दिल्ली उच्च न्यायलय के फैसले को निजता के अधिकार और फैसले की जीत बता कर खुश हो रहे है तो उन्हें आने वाले सामाजिक बवंडर के लिए भी तैयार रहना होगा .कही ऐसा न हो की चन्द लोगो के मन मुताबिक करने की इच्छा को ध्यान में रखते -रखते हम बहुसंख्यक समाज की भावनावो का अनादर कर बैठे .उदाहरण के लिए कुछ समय पहले एक पश्चिमी देश में महिलाओं ने इस लिए प्रदर्शन किया की उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं दिए जा रहे है जानते है इसके पीछे उनका तर्क क्या था कि जिस तरह मर्द कमर के ऊपर बिना कुछ पहने या सीने वा ऊपरी जिस्म की नुमाइश करते बाहर घूमते- फिरते रहते है वह अधिकार उन्हें क्यों नहीं है ..मन मुताबिक करने के अधिकार के लिहाज से कहे तो उनकी मांग कतई गलत नहीं है लेकिन जरा सोचिये उनकी यह मांग मान ली जाए तो बहुसंख्यक समाज पर इसका क्या असर होगा ,अगर भारत में भी कल को कुछ लोग ऐसी ही कोई मांग उठा दे तो क्या हम तब भी यही कहेंगे की यह मानवाधिकार का मामला है .....
भारत वर्ष को विश्व के सबसे सभ्रांत देशो में गिना जाता है .यंहा की संस्कृति और सभ्यता को सराहा जाता है ,लेकिन पश्चिमी देशो से तुलनात्मक रूप में यह बिलकुल भिन्न है .ऐसे में समलैंगिकता को मान्यता मिलने के साथ न सिर्फ परिवार और समाज बल्कि कानूनी स्वरूप भी बदल जाएगा .उदाहरण के लिए भारतीय दंड विधान की धरा ४९७ यानि पर स्त्री गमन कानूनी भाषा में कहे तो जारकर्म ...इस कानून के तहत यदि कोई पुरुष किसी ऐसी ब्यास्क महिला की इच्छा पर भी उसके साथ सम्बन्ध बनाता है जो पहले से शादी शुदा है तो उस स्त्री की सहमति और इच्छा का कोई मतलब नहीं होगा और ऐसा करने वाले पुरुष को दो साल की सजा हो सकती है लेकिन सवाल यह की आपसी सहमति और बिना किसी जोर दबाव से बने सम्बन्ध के बावजूद अपराध और सजा क्यों ....? आपसी सहमति और निजता के अधिकार की बात करे तो क्या एक ब्यास्क लड़की और लड़का किसी होटल में जाए और खुद को आपस में दोस्त बताते हुए एक कमरा रहने के लिए मांगे तो मिल जाएगा, नहीं ,क्योकि अधिकतर होटल मालिक अपने रजिस्टर में रिश्ते के स्थान पर दोस्त लिखना कतई पसंद नहीं करेंगे और गलती से कही पुलिस मेहरबान हुई तो सीधा भारतीय दंड विधान की धरा २९४ के तहत सार्ब्जानिक अश्लीलता का मामला दर्ज कर देगी फिर आपसी सहमति का मतलब क्या और बिना किसी शिकायत के अपराध कैसे ...?क्या कोई पुरुष और महिला , लड़का और लड़की आपस में मित्र नहीं हो सकते और एक साथ एक कमरे में नहीं रह सकते और अगर रहते है तो अपराध क्यों और सजा कैसी ..? जाहिर है स्वेक्षा से बनने वाले समलैंगिक संबंधो के कानूनी जमा पहने के बाद इस तरह की कई आवाजे और उठेंगी और स्वेक्षा और सहमति की नई परिभाषा परिभाषित करने का दबाव भी बढेगा . ......
समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिलने के बाद भले ही समलैंगिक संबंधो की वकालत करने वाले लोगो की मुराद पूरी हो जाए लेकिन परिवार का बिखंदन शुरू हो जाएगा और स्त्री पुरुष की नई परिभाषा लिखी जाएगी क्योकि भारत जसे देश में कोई इस बात को आसानी से हजम नहीं कर सकेगा की उसकी पुत्रबधू की जगह कोई लड़की नहीं बल्कि उसके पुत्र जैसा लड़का आए या उसे दामाद के रूप में एक लड़की मिले और जब -जब ऐसा होगा तब -तब परिवार में होगा बिखंडन ....जो न समाज के लिए ठीक होगा और न देश के लिए .......

No comments:

Post a Comment