Tuesday 10 May 2016


उत्तर प्रदेश : संघर्ष और वजूद की लडाई ...
--- अराजकता और वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठ कर बिकास का मार्ग प्रशस्त करने की आवश्यकता

जब उत्तर प्रदेश में जातिगत आधार उभर रहे हो, सर्व समाज के बजाय जातिगत मूल्यों को अहमियत दी जा रही हो और उनके संघर्ष और स्वाभिमान को अपने संघर्ष और स्वाभिमान की ढाल बनाने की परम्परा चल निकली हो तो ऐसे में कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के बयान पर प्रतिक्रिया होनी भी थी और हुई भी . लेकिन माफ़ी मागने के बावजूद रीता बहुगुणा को संगीन धाराओ गिरफ्तार करने और उधर लखनऊ स्थित उनके घर को आग के हवाले करने के कई निहतार्थ निकले गए .भले ही ऐसा करके रीता बहुगुणा जोशी के उस अपराध से कही बड़ा अपराध क्यों न हो गया हो .लेकिन एक बात तो तय है की लखनऊ के सबसे सुरक्षित और सम्बेदंशील स्थान पर पुलिस की मोजुदगी में चंद लोगो ने अमानवीयता का जो नंगा खेल खेला उसने बिपक्षी दलों को कानून ब्यवस्था के मुद्दे पर सत्ता में आई मायावती सरकार को घेरने का मौका जरूर दे दिया  ....
राजनीति में कटाक्ष करने की परम्परा नई नहीं है और कटाक्ष करते - करते जाने -अनजाने कई बार जुबान से कुछ ऐसा निकल जाता है जिसको लेकर बवाल हो जाता है.चाहे वह वरुण गाँधी का मामला हो या आजम की जया पर टिप्पडी, प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का विहार के डीएनए वाला भाषण या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिया गया बयान .सभी को लेकर हंगामा हुआ राजनीतिक सरगर्मी तेज हुई लेकिन बात आलोचना तक ही सिमट गई लेकिन सरे आम पुलिस की मौजूदगी में घर फूकने वाली घटना पहली बार हुई थी .अगर यह मान लिया जाय की इससे मुख्यमंत्री मायावती और उत्तर प्रदेश सरकार को कोई लेना देना नहीं था तो कुछ कतिपय लोगो ने निश्चित ही उनकी साख को बट्टा लगाया था और इसमें उत्तर प्रदेश पुलिस भी कटघरे में है तो ऐसे लोगो के खिलाफ कारवाई में देरी क्यों ...?
लेकिन अगर निहतार्थ बड़े है और इसका मकसद कांग्रेस को बैक फुट पर लाना था तो निश्चय ही यह प्रयोजन सफल रहा है लेकिन सवाल ज्यो का त्यों है की आखिर इससे समाज और देश का कितना भला हुआ है और इससे हुए नुकसान की भरपाई आखिर कैसे होगी  ...?
भले ही यह तत्कालीन जद्दोजहद थी उत्तर प्रदेश की दो ऐसी कद्दावर महिला राजनीतिज्ञों के बीच की .  जिसमे एक चर्चित और प्रगतिशील पिता की पुत्री थी तो दूसरी संघर्षो के बीच तपकर अपना खुद का वजूद बनाने वाली . लेकिन दुर्भाग्य से यह जद्दोजहद बिकास की नहीं संघर्ष और वजूद की थी  . कांग्रेस जहा बहुजन समाज पार्टी के साथ खड़े उन वर्गो और जातियो को अपने साथ लाने की हर संभव कोशिश कर रहीं थी जो कभी उसके साथ थे लेकिन दूसरी तरफ बसपा अपने किले को दरकने नहीं देना चाहती थी और अपना वजूद बचाने की हर वह मुमकिन कोशिश कर रही थी  जो वह कर सकती थी  .. लेकिन इसके बीच उत्तर प्रदेश का कितना भला हुआ  ..?.क्या इस लडाई से उत्तर प्रदेश के बिकास की राह अवरुद्ध नहीं हुई  ..? जरूरत है वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर उत्तर प्रदेश को बिकास के पथ पर आगे ले जाने की जिससे यहाँ का हर बाशिंदा खुशहाली की सांस ले सके ...,जो ऐसा करेगा वही उत्तर प्रदेश का असली नेता कहलाएगा .......
इन सबसे इतर अगर अगर केवल राजनीति की बात की जाय तो एक कहावत खुद बखुद एक बार फिर से चरितार्थ होती दिखाई दे रही है कि राजनीति में कोई स्थाई रूप से दोस्त या दुश्मन नहीं होता . .. उत्तराखंड में शक्ति परीक्षण के दौरान बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का एक दूसरे से हाथ मिलाना यही साबित करता है तो मौके के अनुरूप अपने सिद्धांतो को बदलने की कला ही राजनीति कहलाती है लेकिन राजनीतिक पार्टियों को यह भी समझना होगा कि उत्तर प्रदेश की लड़ाई वजूद की लड़ाई है जिसमे मतदाता चाल , चरित्र और चेहरा सभी परखेगा और 2014 के लोकसभा चुनाव की तर्ज पर जब भी जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर वह मतदान करेगा उसकी कसौटी पर केवल और केवल बिकास होगा  ..... 

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