Tuesday 10 May 2016

ई वी एम के जिन्न पर सियासत . . 
. . अमेरिका में वैलेट पेपर से होती है वोटिंग तो जर्मनी और आयरलैंड ने ईबीएम पर लगाईं रोक ....

 . . . . कहते है जिन्न अच्छे भी होते है और बुरे भी . कुछ उन्हें आसमान से उतरा फ़रिश्ता कहते है तो कुछ आफत का परकाला . कुछ यही हाल आज ई वी एम मशीन का है .जिस ई वी एम मशीन को तुलना कल तक लोग भारतीय लोक तंत्र की उस देवी से करते नहीं थकते थे जो आज भी अपनी आँखों पर पट्टी बाँध कर न्याय और निष्पक्षता को सुनिस्चित करती है .आज उसी को कोस रहे है .लेकिन एक बहुत पुरानी कहावत की न निगलते बने न उगलते राजनैतिक पार्टिया और उसके नेता इसी भवर जाल में फसे दिखाई दे रहे है वह न तो खुल कर ई वी एम को बईमानी का पिटारा कह पा रहे है और न ही खुल कर आलोचना ही .लेकिन वह अपनी यह आवाज़ काफी बुलंदी से उठा रहे है की इस मशीन से तकनीकी जादूगरी की जा सकती है और प्रमाण के रूप में उन्होंने ऐसा कर के दिखाया भी ...विपक्ष के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने तो फिर से बैलेट पेपर से चुनाव की वकालत तक कर दी थी ... 
जिस तरह हर तस्बीर के दो पहलू होते है अब देखने वाले पर है की कौन किस नजर से देखता है . इस मशीन के ज़रिए भारत में बन्दूक के दम पर बैलेट की परम्परा पर अंकुश ही नहीं लगा समय और सुबिधा भी मुहैया हुई .मतदान सरल हुआ परिणाम दिनों के बजाय घंटो में आने लगे ..एक तरह से कहे की धन और धान्य दोनों की बचत इस मशीन के ज़रिए संभव हुई ..अब जरा इस मशीन का दूसरा पहलू भी जान लीजिए जिस मशीन से मतदान और मतगणना की प्रक्रिया तेज और बेहद सरल हो जाती है उसी मशीन को विश्व के सबसे ताकतवर और बिकसित देश अमेरिका ने नकार दिया है आपको जान कर शायद हैरानी हो की जिस बैलेट पेपर से वोटिंग को हम पुराने ज़माने की विधा कहते है उसी विधा से आज भी अमेरिका में मतदान और मतगणना होती है .यही नहीं जर्मनी और आयरलैंड के अधिकारियो ने ही नहीं वहां की सुप्रीम कोर्ट ने भी ई वी एम मशीन के प्रयोग पर रोक लगा दी है . .....
अब सवाल है ई वी एम पर दोष मढ़ने और इसको लेकर राजनीतिक हाहाकार की जिसके चलते भारत में राजनीतिक पारा न सिर्फ गरम गया है बल्कि इस मशीन के प्रयोग को लेकर दुनिया भर में एक बहस को भी हवा मिल गई है .अब जहाँ बहस होगी वहां खेमे बंदी और गुटबंदी भी होगी .एक खेमा उनका होगा जो इसे और इसके गुणों के प्रसंसक होगे और यह भी हो सकता है की ऐसा करना उनकी कही न कही कोई मज़बूरी भी , और दूसरा खेमा वह जो इसको लेकर कही न कही से आशंकित है . थोड़ा पीछे जाए तो कांग्रेस की पिछले लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद भी सवाल उठा था . इसको लेकर कांग्रेस की जादूगरी के बजाय ई वी एम की जादूगरी की चर्चा भी सतह पर आई थी . लेकिन ढके छुपे शब्दों में ...... हाल के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी केजरीवाल समेत पूरी आम आदमी पार्टी ने न सिर्फ ईबीएम पर सवाल उठाया था बल्कि चुनाव आयोग तक इसको लेकर शिकायत तक दर्ज कराई थी  ... 
लेकिन लाख टेक का सवाल है की लोकतंत्र और उसकी ब्यवस्था को संदेह से परे रखने के लिए उचित पहल को क्या नाकारा जा सकता है क्या उन सवालों के समाधान की कोई सार्थक कोशिश नहीं की जानी चाहिए जिसने लोकतंत्र की जड़ को झकझोर दिया है आम आदमी भी जानना चाहता है की ई वी एम मशीन को लेकर जो सवाल उठे है वह कितने सही है और ऐसे किसी आरोप को दरकिनार करने का आधार क्या है ,अब जाहिर है सवाल उठा है तो उसके जबाब भी तलाशे जाने चाहिए .......

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