Monday 18 April 2016

                 O    .......  MY ........ GOD

  .....स्वार्थ की बलिबेदी पर भगवान् से 

         महापुरुष तक ....

.. न कोई रजिस्ट्री , न खारिजं दाखिल और न ही किसी अधिकारी और राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता ,बस जरूरत है किसी ईष्टदेव की केवल एक मूर्ति अथवा कब्र की जिसपर बाद में मंदिर , मस्जिद या गिरजाघर की बुनियाद खड़ी की जा सके .यानी जो जमीन सरकारी वह जमीन हमारी कुछ यही फंडा है तेजी से पनपती उस जमात का जो धर्म को कमाई के धंधे में तब्दील करना चाहता है .समय और परिस्थितियों के अनुसार भू माफिया भी विवादित जमीन पर कब्जे के लिए इस नायब फार्मूले का इस्तेमाल करते रहे है . गावं हो शहर हो या मेट्रो सिटी सभी जगह ऐसा ही नजारा दिखने में मिल जाता है .अब धर्म और धार्मिक स्थल का मामला हो तो भला बोलने का साहस कौन जुटाए .लिहाजा धर्मस्थली को हटाना मुश्किल ही नामुमकिन हो जाता है शायद ही कभी ऐसे अवैध पूजा स्थलों को हटाने की प्रक्रिया कभी अमल में लाई जा सकी हो लिहाजा शांति व्यवस्था का हवाला देकर ऐसी शिकायतों को ठंडे बसते में दाल दिया जाता है .क्योकि हमारे समाज में धर्म की प्रधानता जो है .अब इससे किसी को क्या फर्क पड़ता है की जिस धर्म को हथियार बना कर वह कमाई का रास्ता तैयार कर रहे है वह धर्म क्या कहता है और वह अपने मानने वालो को क्या सन्देश देता है ...
ऐसे में सार्वजनिक स्थान पर पूजास्थल न बनने देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक सराहनीय कदम के रूप में देखा जाना चाहिए.इस फैसले ने आशा भरी निगाहों से उच्च न्यायलय और उच्चतम न्यायलय की ओर देखने वाले चिंतनशील लोगो को ओर मजबूत किया है . अब देखना है की केंद्र और राज्य सरकारों का इस पर क्या मत होता है . क्योकि इस फैसले से न सिर्फ धर्म की ठेकेदारी करने वाले लोगो के पेट में दर्द होगा बल्कि राज्य और केंद्र सरकारों के लिए भी चिन्तनीय होगा ,खासकर उन राजनीतिक पार्टियों के लिए जो अपने महापुरुषों और नेताओ की छवि में अपना राजनीतिक भाबिष्य तलाशती है और पार्टी के कार्यकर्ता पार्टी का आधार मजबूत करने के लिए गावं से लेकर शहरो तक में पार्टियों के इन तारणहारो की मूर्तिया लगाने के लिए चिर प्रचलित फार्मूले का इस्तेमाल करते है ...जाहिर है राजनीतिक पार्टिया भी इस फैसले के पीछे छुपे सन्देश को भी समझ रही होगी और इशारे को भी .....शायद इसीलिए इस पर अभीतक वह कारगर कदम नहीं उठाए गए जो लाजमी है  .......
सबसे ख़ास बात तो यह की इस फैसले की बुनियाद गुजरात में पड़ी .वही गुजरात जंहा नरेंद्र मोदी का शासन है और अपने को धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टी का नेता बताने वाले कई धुरंधर नरेंद्र मोदी को एक ख़ास समुदाय का नेता ताल ठोक - ठोक कर कहते है .लेकिन सन 2009 के गुजरात हाई कोर्ट के फैसले जिसमे अहमदाबाद के अधिकारियो को सडको पर बने पूजा स्थलों सहित सभी अवैध ढांचो को गिराने का निर्देश था पर मोदी सरकार ने बखूबी अमल किया और इस फैसले के रास्ते में आने वाले उन सैकडो अवैध निर्मित पूजा स्थलों को हटा दिया गया जिन पूजा स्थलों से जुड़े समुदाय का नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को माना जाता है और जिसके पक्ष में कार्य करने के आरोप उन पर विपक्षी पार्टी के नेता अक्सर लगाते रहे है .लेकिन मोदी ने जिस तरह गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को अमल में लाने की कारवाई अमल में लाई उसने उनके दृढ इरादों और इच्छा शक्ति की झलक जरूर पेश की .इसके खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट गई और अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा है की वह राज्य सरकारों से बात कर इस फैसले को अमल में लाने की कारवाई सुनिश्चित करे ...तो अब वक्त का तकाजा यही है की इस फैसले को उसके वास्तविक रूप में कडाई से अमल में लाया जाए तभी देश और समाज का भला हो सकता है क्योकि भगवान् और पैगम्बर कभी नहीं चाहते की वह बिबाद और लोगो की परेशानी का सबब बने वह चाहते है तो केवल और केवल मानव कल्याण ....और इसको इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए

लेखिका सभी धर्म और मजहब का सम्मान करती है लेकिन इसकी आड़ में स्वार्थ और व्यापार की प्रखर विरोधी है .

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